kanchan singla

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आदर्शों की गाथा....

आदर्श कहां से आए...??
यह एक सवाल मन में उमड़ा जाए
चलो फिर इन सवालों के जवाबों को पाएं.....

वेद-पुराणों से आये ये आदर्श
जिन्हें पढ़कर गुरुओं ने बनाए आदर्श
जीवन पथ पर चलने की खातिर 
हमको सिखलाए गए आदर्श...!!

दादा-दादी, नाना-नानी ने सीखे आर्दश गुरुओं से
मां पापा ने पाए उनके आदर्श
हमने पाए आदर्श अपने माता पिता के
कुछ मिल-जुले से आदर्श मिले हमें
दादी, नानी की कहानियों से
जो बन गए अब नए युग के नए आदर्श...!!

आदर्शों की कहानी है यह
मिली हमें अपनों से है
एक किस्सा सुनाए
हम आदर्शो की गाथा गाएं.....!!


जब हो बात आदर्शों की तब 
एक ही नाम जुबां पर आए
राम-सिया की कहानी
मेरी कविता दोहराए...!!


आदर्श थे जो राम ने निभाए
पिता के इक वचनों की खातिर
चौदह वर्ष वन में बिताए
छोड़ महलों के सुख को 
जो वैराग्य अपनाए
पति का फ़र्ज़ निभाना चाहा पर
पिता रूपी राजा का कर्तव्य आड़े आए
प्रजा की खातिर और सीता मैया का रखने मान
भारी दिल से दे दी आज्ञा सीता मैया को वन जाने की
है बच्चों की खुशियों की खातिर 
पिता यह कलंक अपने माथे से लगाए
मेरे राम के कर्म उनके आदर्शों की गाथा गाएं...!!


जब आए जुबां पर राम जी का नाम
तब सीता मैया के बिना यह नाम अधूरा रह जाए
आदर्शों का दूसरा रूप जो सीता माता के नाम से जाना जाए
नारी की खातिर लिखे हर नियम उन्होंने बखूबी निभाए
बेटी होने के आदर्शों से लेकर, पत्नी होने के आदर्श
रानी मां से एक मां होने के आदर्श
मौन मुख से बस निभाती जाएं
भूल कर कि वह स्वयं क्या हैं..??
जब प्रजा ने उठाया सवाल 
कहा सिद्ध करो
आज भी हो तुम वही स्वच्छ निर्मल धारा
वन जाकर भी जब नहीं मिटा यह कलंक
तब धरती मां की गोद में जाकर 
सबको पश्चाताप करवाएं...!!

आज जब भाई-भाई का ना हो पाए
भूल जाएं कि थें कोई भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न
जो मिशाल हैं भाइयों के असीम प्रेम की
लक्ष्मण चौदह वर्ष बिन सोये भाई की सेवा करते जाएं
जहां आज भाई थोड़े धन के लिए लड़ मर जाएं
वहां भरत भाई की खातिर गद्दी छोड़ 
सन्यासी सा जीवन बिताएं और
शत्रुघ्न अकेले सारे भाइयों के फ़र्ज़ निभाते जाएं...!!



यह आदर्शों की गाथा यहीं नहीं रुकी
युग बदला, लोग बदले, बदला भेष
बस बदलें नहीं बस यह आदर्श 
माता-पिता, भाई-बहन सब रिश्ते थे वही
बस बुराई रूप बदल कर आयी
पहन मुखौटा इंसानों का
छल-कपटों से इंसानियत को गिराने आयी
चला कर चक्र कृष्ण ने काटा हर छल
छल को छल से काटने के दायरे सिखाये
प्रेम मिलेगा प्रेम से, छल कटेगा छल से
कृष्ण राधा की गाथा हमको यही समझाए...!!


आदर्शों की गाथा का यह सिलसिला कभी खत्म ना होने पाए
अभी और हैं किस्से जो सुनाने बाकी रह जाएं....!!

ए मेरे भारतवासियों यह मत भूलो 
हम जिनकी संतानें हैं, वह आदर्शों की निशानी हैं
जब भी भटकों तुम जीवन पथ से
एक बार याद कर लेना
इन आदर्शों को आगे लेकर जाना है
बुननी हमें आदर्शों की नयी कहानी है..!! 


लेखिका - कंचन सिंगला
#लेखनी प्रतियोगिता -14-Dec-२०२१




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7 Comments

Ravi Goyal

15-Dec-2021 09:46 AM

वाह बहुत ही खूबसूरत रचना 👌👌

Reply

Shrishti pandey

15-Dec-2021 12:25 AM

Bahut hi badhiya

Reply

Niraj Pandey

15-Dec-2021 12:08 AM

जय हो बहुत ही बेहतरीन लिखा है आपने👌

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